नवरात्रि का तीसरा दिन, शक्ति की उपासना का पर्व, देवी दुर्गा के तीसरे रूप देवी चंद्रघंटा की पूजा का दिन है। इस दिन को विशेष रूप से देवी के अद्भुत तेज और उनके चंद्र आकार की भव्यता को समर्पित किया जाता है। देवी चंद्रघंटा को शक्ति और सौम्यता का संगम माना जाता है, और उनकी पूजा से भक्तों को भय और नकारात्मकता से मुक्ति मिलती है।

देवी चंद्रघंटा का परिचय और महत्त्व

देवी चंद्रघंटा का नाम उनके माथे पर सुशोभित अर्धचंद्र के कारण पड़ा है। उनके माथे पर स्थित घंटे के आकार का चंद्र उनके पराक्रम और शक्ति का प्रतीक है। देवी चंद्रघंटा को सौम्य और उग्र दोनों रूपों में देखा जाता है। उनका यह रूप अत्यंत ही शांत और सौम्यता से भरा होता है, लेकिन जब भी धर्म की रक्षा के लिए आवश्यकता होती है, तो वह उग्र रूप धारण कर दुष्टों का संहार करती हैं​।

देवी चंद्रघंटा की दस भुजाएँ होती हैं, जिनमें अस्त्र-शस्त्र सुशोभित होते हैं, जो उनके युद्ध कौशल और अपार शक्ति का प्रतीक हैं। उनके वाहन सिंह है, जो साहस और निर्भीकता को दर्शाता है। उनकी प्रतिमा शौर्य और साहस की प्रतीक मानी जाती है, जो भक्तों को जीवन के हर संघर्ष में विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देती है। देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से मनुष्य को भय, शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है, और उसे आत्म-विश्वास और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह किया, तब विवाह के समय उन्होंने चंद्रघंटा का रूप धारण किया था। उनके इस रूप ने सभी देवताओं और ऋषियों को आशीर्वाद दिया और भगवान शिव के साथ उनके विवाह में उनकी उग्रता और वीरता भी दिखाई दी। उनके इस रूप का महत्व यह है कि वह अपने भक्तों की हर प्रकार की समस्याओं और कठिनाइयों का अंत करने के लिए तत्पर रहती हैं।

देवी चंद्रघंटा का यह रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में कठिनाइयों और चुनौतियों से डरने की बजाय उनका डटकर सामना करना चाहिए। उनकी पूजा से व्यक्ति को जीवन में संघर्षों से निपटने की शक्ति प्राप्त होती है और उसे यह विश्वास होता है कि वह हर कठिनाई को पार कर सकता है​।

आध्यात्मिक महत्व

देवी चंद्रघंटा की पूजा का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहन और गूढ़ है। उनकी पूजा से साधक की मणिपूर चक्र की जाग्रति होती है, जो आत्म-विश्वास, साहस और आंतरिक शक्ति का केंद्र होता है। मणिपूर चक्र का जाग्रत होना व्यक्ति को मानसिक स्थिरता, साहस और आत्म-संयम प्रदान करता है, जिससे वह जीवन के संघर्षों का सामना कर सकता है। देवी चंद्रघंटा की पूजा से साधक को मानसिक शांति, शौर्य, और साहस की प्राप्ति होती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में उसे सफलता दिलाने में सहायक होती है​।

उनकी पूजा से साधक को यह अनुभूति होती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, अगर वह ईश्वर के प्रति समर्पित और धैर्यवान रहेगा, तो वह हर चुनौती को पार कर सकता है। देवी चंद्रघंटा की पूजा से व्यक्ति के भीतर साहस, शक्ति और निडरता का संचार होता है, जिससे वह हर विपत्ति से जूझने के लिए तैयार रहता है।

देवी चंद्रघंटा का प्रतीकवाद और रूप

देवी चंद्रघंटा की प्रतिमा अत्यंत ही भव्य और तेजस्वी मानी जाती है। वह दस भुजाओं वाली देवी हैं, जिनमें उनके द्वारा धारण किए गए अस्त्र-शस्त्र उनके शक्तिशाली और उग्र रूप को प्रदर्शित करते हैं। उनके माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा स्थित होता है, जो उनके रूप का प्रमुख प्रतीक है। यह घंटे का चंद्रमा उनके नाम को सार्थक करता है और उनके शौर्य तथा साहस को दर्शाता है। उनका वाहन सिंह है, जो निर्भीकता, साहस और उग्रता का प्रतीक है।

देवी चंद्रघंटा का यह रूप विशेष रूप से उन साधकों के लिए प्रेरणादायक है, जो जीवन में चुनौतियों का सामना करने के लिए साहस और आत्म-बल की आवश्यकता महसूस करते हैं। उनकी प्रतिमा यह संदेश देती है कि जीवन में आने वाली हर चुनौती का सामना साहस और आत्मविश्वास से किया जाना चाहिए।

तीसरे दिन की पूजा का महत्व

नवरात्रि के तीसरे दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा से साधक को आंतरिक और बाह्य दोनों ही शक्तियों की प्राप्ति होती है। उनकी पूजा करने से साधक के मन में साहस, आत्म-विश्वास और धैर्य का संचार होता है। इस दिन की पूजा साधक को नकारात्मकता और भय से मुक्ति दिलाती है और उसे मानसिक शांति प्रदान करती है​।

देवी चंद्रघंटा की पूजा से साधक को न केवल शारीरिक बल की प्राप्ति होती है, बल्कि उसे मानसिक और आध्यात्मिक बल भी प्राप्त होता है। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से शक्ति मिलती है, जिससे वह जीवन के हर कठिनाई को पार कर सकता है।

मंत्र और साधना

देवी चंद्रघंटा की पूजा के दौरान साधक निम्न मंत्र का जाप करते हैं:

  • ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः।
  • पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
    प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघंटेति विश्रुता॥

इस मंत्र का जाप करने से साधक के भीतर आत्म-विश्वास और साहस का संचार होता है और वह मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करता है। इस मंत्र का उच्चारण साधक को नकारात्मक शक्तियों से बचाने में सहायक होता है और उसे मानसिक शांति प्रदान करता है​।

देवी चंद्रघंटा की पूजा से लाभ

देवी चंद्रघंटा की पूजा से व्यक्ति को जीवन में अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। उनकी पूजा से भय और नकारात्मकता का नाश होता है और साधक के भीतर साहस और आत्म-विश्वास का संचार होता है। उनकी पूजा करने से साधक को मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है, जिससे वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। उनकी कृपा से साधक को जीवन में हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति मिलती है और वह जीवन के हर संघर्ष में विजयी होता है।

देवी चंद्रघंटा की पूजा से साधक को न केवल बाह्य बल्कि आंतरिक शांति भी प्राप्त होती है, जिससे वह जीवन में शांति और संतुलन बनाए रखता है। उनकी पूजा से साधक के भीतर की सभी नकारात्मक शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं और उसे मानसिक और शारीरिक शांति प्राप्त होती है।

निष्कर्ष

नवरात्रि के तीसरे दिन की पूजा देवी चंद्रघंटा को समर्पित होती है, जो शौर्य, साहस, और आत्म-विश्वास का प्रतीक हैं। उनकी पूजा से साधक को नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है और उसे मानसिक शांति, आत्म-बल, और साहस प्राप्त होता है। देवी चंद्रघंटा की पूजा से साधक को जीवन में हर कठिनाई का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है और उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफलता मिलती है। उनकी कृपा से साधक को आंतरिक और बाह्य शांति प्राप्त होती है, जिससे वह जीवन में संतुलन बनाए रखता है। देवी चंद्रघंटा का जीवन और उनकी पूजा साधकों को जीवन में शौर्य और साहस के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

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